pehchaan
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तेरी कोख में कितनी खुश थी मै,
सुरक्षित, बिना किसी डर के
साँसे लेती थी मै
तेरा अभिन्न अंग हूँ, यह सोचकर
बड़ा मजा आता था,
अपनी ही दुनिया का यह माहौल
मुझे बड़ा भाता था
साथ-साथ, हम-तुम मिलकर
खूब बातें किया करते थे
सोते-जगते, हँसते-खेलते
हम ख़ुद में जिया करते थे
माँ
तेरी कोख में कितना खुश थी मै
क्यों मै फिर आज़ाद हुई
उन नन्हीं खुशियों कि सौगात हुई
जो कल था, वो आज क्यों नही
अब इस दुनिया में वो बात क्यों नही
माँ
आज,
क्यों मेरे आंचल को रंग दिया जाता है
क्यों इस खून को स्याह कहा जाता है
क्यों मेरे वजूद से खेल रहा कोई
किसने दी उसे इतनी आजादी
माँ तेरे बच्चे को तेरे ही सामने
उधेड़ रहा कोई
सवालों से घिरी मै , ख़ुद को अकेला पाती हूँ
सही होकर भी मै ,,
आख़िर क्यों ग़लत कही जाती हूँ
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